8/13/2014

जाओ...मौत से कह दो...!!!


जाओ...मौत से कह दो...अभी वक्त नहीं है मेरे पास...
          तकाज़ा करने से पहले...
      उससे कहना कि पहले मुझसे वक्त ले ले...

    आजकल मैं मशरूफ हूं, बेहद भागदौड़ में
खुद से आगे निकलने की, तो किसी को मात देने की...

बचपने में सीखा था, मिलकर रहना है, भाईचारे से
    जवानी तक पहुंचते ही वो फलसफा, न जाने कहां फ़ुर्र हो गया है
अक्ल दौड़ाता हूं अब मैं न जाने किन-किन मुद्दों पर
     बचपने की मासूमियत को तो मैं मौत दे चुका हूं...

जाओ...मौत से कह दो...अभी वक्त नहीं है मेरे पास...
          तकाज़ा करने से पहले...
      उससे कहना कि पहले मुझसे वक्त ले ले...

ऊंच-नीच का पता नहीं था, क्या होती थी जब हम मासूम थे...
      बदला वक्त और बदल गई वो बचपने की अल्हड़ मासूमियत भी...

कब हो गये जवान हम , और कब बदल गई हमारी शख्सियत...
           कैद कर लिया हमको हमीं ने
           क्या किसी को झूठा इल्ज़ाम दें
             अब तो बस दुआ करते हैं
               खुदा खैर करे...!!!