10/26/2017

अपने शहर की गलियाँ बहुत याद आती हैं
जब भी गुजरता हूं इन गलियों से
वो महबूबा बहुत याद आती है...

मैं निकलता था जब भी इन गलियों से
वो सूरज की रौशनी सी छत पर आ जाती थी 
जब से गया हूं इन गलियों को छोड़कर
ये गलियाँ अब मुहब्बत का अहसास कराती हैं
अपने शहर की गलियाँ बहुत याद आती हैं ...

8/25/2017

कुछ ख्वाब बुने थे इक दिन मैंने ...

कुछ ख्वाब बुने थे इक दिन मैंने
कुछ अधर में छूट गये
कुछ सपनों में ही टूट गये
कुछ बाकी बचे थे किसी तरह
पाला पोसा उन्हें बड़ा किया
फिर आई इक और आंधी
जिसने जिंदगी को झकझोर दिया
कैसे संभलू कैसे दोबारा...
कुछ ऐसे ही झंझावत में था फंसा हुआ
आंखे मूंद तब उसको ध्यान किया
ईश्वर की "प्रीत" जुड़ी मुझसे तब
जिसने राहों को मोड़ दिया
निश्छल मन से दामन थाम लिया
कुछ राह दिखाई चलने की
टूटे ख्वाबों को फिर से जिंदा किया
ए-मालिक तू बस ऐसे ही अब
अपनी "प्रीत" बनाए रखना
ताकत बनना साहस देना
ख्वाब अधूरे करूं मैं पूरे
ए-प्रीत तू मुझमें बस जाना
... #रावीबरेवी I Rk I...

10/03/2014



यकीन मान कि तू हारा नहीं है...
लोग कुछ भी सोंचे लेकिन तू बेचारा नहीं है
कोई नहीं वक्त किसी का एक सा नहीं होता
“कल” तुम्हारा था, “आज” हमारा नहीं है
यकीन मान कि तू हारा नहीं है...
कोई रंज न कर ग़र तेरे साथ कोई नहीं है
खुद को देख आइने में हर रोज़
आसमां के तारों को देख , ज़मीं के सितारों को देख
देख सड़क पर घूमते आवारा जानवरों को देख
तू देख महलों मे रहने वाले रईसों को देख
देख तू दनिया के रंग-बिरंगे छल को देख
प्यार करने वालों को देख, नफ़रत करने वालों को देख
तुझे ये खुद ही महसूस होगा
कि तू हारा नहीं है...
लोग कुछ भी सोंचे लेकिन तू बेचारा नहीं है
कोई नहीं वक्त किसी का एक सा नहीं होता
“कल” तुम्हारा था, “आज” हमारा नहीं है



तुझे मुझ पर यकीं हो न हो, मुझे खुद से ज़्यादा तुझ पर है
खुदा ने भेजा है मुझे, पूरे यकीन के साथ...

ग़र हारा हूं , तो जीत भी मैंने हासिल की है
तमाम लम्हें गुज़ारे हैं तेरे बिन, तो प्रीत भी तुझ से ही की है
तू न हो उदास इक पल को भी
तू न हो निराश इक पल को भी
तूने जो भरोसा किया था उस दिन मुझ पर
मैं उसे कभी टूटने न दूंगा
ग़र हारा हूं , तो जीत भी मैंने हासिल की है
तमाम लम्हें गुज़ारे हैं तेरे बिन, तो प्रीत भी तुझ से ही की है
लौट के आऊंगा मैं ज़रूर फिर से, जल्द ही...
लौट के छाउंगा मैं ज़रूर फिर से, जल्द ही...
ये मेरा वादा है
ग़र हारा हूं , तो जीत भी मैंने हासिल की है
तमाम लम्हें गुज़ारे हैं तेरे बिन, तो प्रीत भी तुझ से की है

9/11/2014

मैं कौन हूं...

   अपनी मां का लाल या पिता का राजदुलारा
मैं कौन हूं...
   अपने दादा का नाती या नानी का पोता
मैं कौन हूं...
   अपनी क्लास का क्लॉस मॉनीटर या वैकबेंचर
मैं कौन हूं...  
   अपने दोस्तों का चहेता या किसी का दुश्मन
मैं कौन हूं...
   अपने मुहल्ले का मासूम या गली का आवारा
मैं कौन हूं...
अपने रसूखदार ख़ानदान का इकलौता वारिस या इक बहन के प्यार को तरसता भाई  
मैं कौन हूं...
   अपनी प्रेयसी का प्यारा या फिर किसी की नफ़रत का शिकार
मैं कौन हूं...
   एक रंगीला या फिर इक गुमनाम किरदार
मैं कौन हूं...
   गरीबों का रहनुमा या अमीरी का अहंकार
मैं कौन हूं...
   आस्तिक या फिर इक नास्तिक
मैं कौन हूं...
   रोज़गार या फिर इक बेरोज़गार
मैं कौन हूं...
   एक पत्रकार या फिर बेक़ार
मैं कौन हूं...
   मां होती तो उससे ज़रूर पूंछता
पिता से क्या पूछूं...
   नौ महीने कोख़ में पालने की पीड़ा
   खुद भूखे रहकर आंचल में सहेजकर रखने की ममता
   उंगली पकड़कर ज़मीन पर पैर धरने की कला
   कान पकड़ सही और ग़लत का ज्ञान
      ये सब कुछ तो दे गई वो

सच में अगर वो होती, तो आज़ मैं ज़रूर पूंछता....

मां बता न..........कौन हूं मैं...
तेरा मान, अभिमान और स्वाभिमान

या फिर...इक पूर्ण विराम...!!!