12/24/2013

कैसे भूल जाऊं तुम्हें...


कि हां मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूं
और
कैसे भूल जाऊं कि मैं ही तुम्हारा गुनहगार हूं...!!!

तुम्हारी खुशी को ख़ामोशी में बदलने का...
अनजाने ही सही लेकिन
तुम्हारे दिल के अरमानों को तोड़ने का

और उससे भी कहीं ज़्यादा,
तुम्हारे भरोसे को ठेस पहुंचाने का...  

कैसे भूल जाऊं तुम्हें...कि
हां सच में तुम्हारा गुनहगार हूं...!!!

हां मैं मानता हूं कि मैंने तुम्हारा दिल दुखाया...
लेकिन शायद तुम्हें ये आभास भी नहीं...
कि उसके बाद एक पल सुकून से मैं भी तो नहीं जी पाया...

बरसों बाद तुम्हीं थीं वो
जिसने मन में एक आस पैदा की...
जीने की ... उड़ने की और ख्बाव बुनने की ...

कैसे भूल जाऊं तुम्हें...
कि हां मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूं...!!!

कैसे ज़हन से निकाल दूं...
ज़िंदगी के वो ख़ूबसूरत दो दिन

जब तुमने आंख मूंदकर
मुझ पर भरोसा कर मुझमें...
ज़िंदगी जीने की मन में हसरत पैदा कर दी
दिल की हर बात कहने की इक आज़ादी दी

कैसे भूल जाऊं मैं...कि
हां मैं तुम्हारा शुक्रगुज़ार हूं...!!!

बात किसी और की होती तो शायद
मैं इतना न तड़पता...
तुमने बुझे हुए दीपक को फिर से इक रौशनी दी...

कैसे मैं फिर से बुझकर
तुम्हारे चेहरे की उदासी का कारण बन जाऊं...

बताओ
कैसे मैं तुमसे, तुम्हें जुदा कर जाऊं...

बताओ
कैसे मैं बरसों बाद तुम्हारे चेहरे पर आई
खिलखिलाहट को भूल जाऊं...

बताओ
कैसे मैं तुम्हारे विश्वास को वापस लाऊं...

तुम्हीं बताओ
मैं कैसे अनजाने में हुए अपने उस गुनाह से
तुमको मुक्त कर पाऊं...

कैसे भूल जाऊं तुम्हें...
कि हां मैं ही तुम्हारा गुनहगार हूं...!!!

हो सके तो मेरी उस नादानी को भुला देना 
इक बच्चे की शरारत समझकर 
फिर से मुस्करा देना ...

क्योंकि

कैसे भूल जाऊं तुम्हें
कि हां मैं तुम्हारा दिल से शुक्रगुज़ार हूं...!!!



   

 
     

  

5/10/2013


      "मनप्रिय"  
   जो 'मन को हो प्रिय' उसे कह दो होकर अभय
   न कहना फिर खुद-से कि निकल गया समय

वक्त न कभी किसी का था, ना कोई हो सका वक्त का
       कहीं कोई जो हो गर 'मन को प्रिय'
    वक्त गुज़रने से पहले तुम बोल देना ह्रदय...!!!

    मन में रखने से अच्छा है खोल देना ह्रदय
       तुम न घुटना मन ही मन फिर
      न फिर करना कोई शिकवा ए-ह्रदय...!!!

   उड़ चलेगा बादल-हवा के झोंकों से हिलकर
   फिर गगन होगा नीला जो होता है अक्सर
   सावन के पतझड़ बनकर रहना से अच्छा है
           बसंत ऋतु बनना
   नई उमंगे-नये मौसम में खुद को तुम रंगों से भर लेना

       बस ऐसे ही हो जाना तुम अभय...
        उस 'मनप्रिय' के लिए भी  
  जो 'मन को हो प्रिय' उसे कह दो होकर अभय...!!!

5/04/2013

तेरा अहसास...!!!


            तेरा अहसास
      आज भी बाकी है मुझमें...

मेरे जीने की वजह ये ही काफी है मुझमें
तेरी चाहत के पल मेरी सांसों में बसते हैं
  तेरी यही यादें काफी हैं मुझमें...!!!

तेरी हर सीख से आज,सच में ज़िंदा हूं...
वरना दुनिया ने तो कब का मार डाला था

    हंसता था-खिल-खिलाता था
     चुलबुल था, शैतान था
रूदन करता था, तो तू कैसे भी मना लेती थी
 मेरी हर नादानी को तू पल में भुला देती थी
 
   वो मेरा बचपन था और तेरा बढ़प्पन
आज मैं बड़ा हो गया हूं...बचपन से भले ही परे हो गया हूं
         
             लेकिन "मां"
             तेरा अहसास
         आज भी बाकी है मुझमें...    
       मेरे जीने की वजह ये ही काफी है मुझमें
        तेरी चाहत के पल मेरी सांसों में बसते हैं
          तेरी यही यादें काफी हैं मुझमें...!!!

कौन है तुझमें छुपा...


      कौन है तुझमें छुपा...वो कौन है मुझमें छुपा...
      झांककर बस देख ले, तू खुद में 'खुद' को भला...
 सच की आंधयों को लेकर तू कूद पड़, सच की जंग में सदा
                न रुक, न सोंच,
      कि अगले पल क्या होगा- तेरा और क्या मेरा भला...
             खुद से उपर उठकर देख
             खुद से हटकर तू सोंच ज़रा
             खुद में खुद को कर महसूस
                 और मिला दे
               खुद को खुदा में ज़रा    
     फिर सोंच ज़रा, कि क्या था तेरा, और क्या था मेरा 
              ये जल-थल-नभ-अग्नि-पाताल
         हर शख्स में है जन्म से ही तो है भरा
                      फिर     
       क्यों मौन है तूने धरा, क्यों मौन है मैंने धरा
            बन जायें हम सब- अब बागी
            और हिलां दें इक बार सारी धरा
            सच की आंधी तले - बस रौंद दे
                 हर इक बला  

      कौन है तुझमें छुपा...वो कौन है मुझमें छुपा...
      झांककर बस देख ले, तू खुद में 'खुद' को भला...
 सच की आंधयों को लेकर तू कूद पड़, सच की जंग में सदा
                न रुक, न सोंच,
      कि अगले पल क्या होगा- तेरा और क्या मेरा भला...!!!