10/03/2014



यकीन मान कि तू हारा नहीं है...
लोग कुछ भी सोंचे लेकिन तू बेचारा नहीं है
कोई नहीं वक्त किसी का एक सा नहीं होता
“कल” तुम्हारा था, “आज” हमारा नहीं है
यकीन मान कि तू हारा नहीं है...
कोई रंज न कर ग़र तेरे साथ कोई नहीं है
खुद को देख आइने में हर रोज़
आसमां के तारों को देख , ज़मीं के सितारों को देख
देख सड़क पर घूमते आवारा जानवरों को देख
तू देख महलों मे रहने वाले रईसों को देख
देख तू दनिया के रंग-बिरंगे छल को देख
प्यार करने वालों को देख, नफ़रत करने वालों को देख
तुझे ये खुद ही महसूस होगा
कि तू हारा नहीं है...
लोग कुछ भी सोंचे लेकिन तू बेचारा नहीं है
कोई नहीं वक्त किसी का एक सा नहीं होता
“कल” तुम्हारा था, “आज” हमारा नहीं है



तुझे मुझ पर यकीं हो न हो, मुझे खुद से ज़्यादा तुझ पर है
खुदा ने भेजा है मुझे, पूरे यकीन के साथ...

ग़र हारा हूं , तो जीत भी मैंने हासिल की है
तमाम लम्हें गुज़ारे हैं तेरे बिन, तो प्रीत भी तुझ से ही की है
तू न हो उदास इक पल को भी
तू न हो निराश इक पल को भी
तूने जो भरोसा किया था उस दिन मुझ पर
मैं उसे कभी टूटने न दूंगा
ग़र हारा हूं , तो जीत भी मैंने हासिल की है
तमाम लम्हें गुज़ारे हैं तेरे बिन, तो प्रीत भी तुझ से ही की है
लौट के आऊंगा मैं ज़रूर फिर से, जल्द ही...
लौट के छाउंगा मैं ज़रूर फिर से, जल्द ही...
ये मेरा वादा है
ग़र हारा हूं , तो जीत भी मैंने हासिल की है
तमाम लम्हें गुज़ारे हैं तेरे बिन, तो प्रीत भी तुझ से की है

9/11/2014

मैं कौन हूं...

   अपनी मां का लाल या पिता का राजदुलारा
मैं कौन हूं...
   अपने दादा का नाती या नानी का पोता
मैं कौन हूं...
   अपनी क्लास का क्लॉस मॉनीटर या वैकबेंचर
मैं कौन हूं...  
   अपने दोस्तों का चहेता या किसी का दुश्मन
मैं कौन हूं...
   अपने मुहल्ले का मासूम या गली का आवारा
मैं कौन हूं...
अपने रसूखदार ख़ानदान का इकलौता वारिस या इक बहन के प्यार को तरसता भाई  
मैं कौन हूं...
   अपनी प्रेयसी का प्यारा या फिर किसी की नफ़रत का शिकार
मैं कौन हूं...
   एक रंगीला या फिर इक गुमनाम किरदार
मैं कौन हूं...
   गरीबों का रहनुमा या अमीरी का अहंकार
मैं कौन हूं...
   आस्तिक या फिर इक नास्तिक
मैं कौन हूं...
   रोज़गार या फिर इक बेरोज़गार
मैं कौन हूं...
   एक पत्रकार या फिर बेक़ार
मैं कौन हूं...
   मां होती तो उससे ज़रूर पूंछता
पिता से क्या पूछूं...
   नौ महीने कोख़ में पालने की पीड़ा
   खुद भूखे रहकर आंचल में सहेजकर रखने की ममता
   उंगली पकड़कर ज़मीन पर पैर धरने की कला
   कान पकड़ सही और ग़लत का ज्ञान
      ये सब कुछ तो दे गई वो

सच में अगर वो होती, तो आज़ मैं ज़रूर पूंछता....

मां बता न..........कौन हूं मैं...
तेरा मान, अभिमान और स्वाभिमान

या फिर...इक पूर्ण विराम...!!!

मैं बदल गया हूंं या तुम बदल गये हो...

मैं बदल गया हूं या तुम बदल गये हो
क्यों लगता है हमसफ़र हमसे जुदा हो गया है

क्यों महसूस होती हैं दूरियां ये तुमसे
क्यों दिलों का कारवां ख़फ़ा-ख़फ़ा सा हो गया है

जानता ग़र मैं अपनी ज़िंदगी की इन राहों को
कसम से न मुड़ता उधर, बस तन्हां गुज़र गया होता

कांटों के पथ पर चलना आदत है मेरी
फूलों का तोहफा बस तुम्हें दे गया होता

महसूस होती थी हर नब्ज़ तुम्हारे अल्फ़ाज़ों से
मगर अब अल्फ़ाज़ों में भी तकल्लुफ़ होने लगी है

इंतज़ार में लम्हां-लम्हां जिसके करीब होता था
वो ही आज मीलों से भी लंबा फासला सा दिखती है

मैं बदल गया हूं या तुम बदल गये हो

क्यों लगता है हमसफ़र हमसे जुदा हो गया है...!!!

8/13/2014

जाओ...मौत से कह दो...!!!


जाओ...मौत से कह दो...अभी वक्त नहीं है मेरे पास...
          तकाज़ा करने से पहले...
      उससे कहना कि पहले मुझसे वक्त ले ले...

    आजकल मैं मशरूफ हूं, बेहद भागदौड़ में
खुद से आगे निकलने की, तो किसी को मात देने की...

बचपने में सीखा था, मिलकर रहना है, भाईचारे से
    जवानी तक पहुंचते ही वो फलसफा, न जाने कहां फ़ुर्र हो गया है
अक्ल दौड़ाता हूं अब मैं न जाने किन-किन मुद्दों पर
     बचपने की मासूमियत को तो मैं मौत दे चुका हूं...

जाओ...मौत से कह दो...अभी वक्त नहीं है मेरे पास...
          तकाज़ा करने से पहले...
      उससे कहना कि पहले मुझसे वक्त ले ले...

ऊंच-नीच का पता नहीं था, क्या होती थी जब हम मासूम थे...
      बदला वक्त और बदल गई वो बचपने की अल्हड़ मासूमियत भी...

कब हो गये जवान हम , और कब बदल गई हमारी शख्सियत...
           कैद कर लिया हमको हमीं ने
           क्या किसी को झूठा इल्ज़ाम दें
             अब तो बस दुआ करते हैं
               खुदा खैर करे...!!!             

     

6/23/2014

        
    तन्हाइयां...

   
तन्हाइयों में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं

         जैसे बिन धागे की कटी पतंग...

तन्हाइयों में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं

        जैसे बिन पानी के प्यासा सावन...

तन्हाइयों में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं

       जैसे बिन पानी के तड़पती मछली

तन्हाइयों में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं

      जैसे समंदर की गहराईयों में मोती सीप का

तन्हाइयों में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं

      जैसे बिन श्वासों के धरा पर रखा मानव शरीर

           कैसे बताऊं...कैसे समझांऊ...

     कि मैं पतझड़ हूं तेरा और तू है मेरा बसंत

     मैं बादल हूं तेरा और तू है सावन मेरा

        रूह के अंदर बस तू-ही-तू है

     फिर भी चंचल मन है कि ढूंढता है तुझे

     कैसे समझाऊं मैं इस चंचल मन को

       कि तू दूर नहीं दिल के पास ही है            

     मेरे मन के कोने-कोने में बस तू-ही-तू है

         कैसे बताऊं...कैसे समझांऊ...

     कि मैं पतझड़ हूं तेरा और तू है मेरा बसंत

     मैं बादल हूं तेरा और तू है सावन मेरा

        रूह के अंदर बस तू-ही-तू है

 
ज़िदगी में गम भी हैं और खुशियां भी हैं...
आँखों में नमी भी है और सुर्खियां भी हैं...
दोस्तों ये दुनिया है...
 
बस समझने और देखने वाले की नज़रों की ये बारीकियां हैं..
गम को गले लगाकर खुशियां मना लो तुम...
नमी को अश्कों से हटाकर एक रौशनी जगा दो तुम...
 
किसी के टूटे हुये दिल को अपनी मुस्कराहटों से जगमगा दो तुम...
किसी की दुआएं लेकर ज़िदगी बना लो तुम...
ये दुनिया है...
बस समझने और देखने वाले की नज़रों की ये बारीकियां हैं...
 
 

 

6/22/2014

इक नई जंग

हर दिन इक नई जंग...एक नई उड़ान है
अकेले हूं ये पता है मुझे
तभी तो तूफानों से प्यार है...


वक्त बदला था , सोंचा था मैंने...
अब साथ चलेंगे मिलकर
लेकिन क्या पता था...कि
वक्त के हाथों फिर से मात खा जाऊंगा...


यकीं है खुद पर,
भले ही मुझ पर कोई एतवार न करे
हर वार का दूंगा जबाव
चाहें कोई छुपकर ही मुझपर वार क्यों न करे


नहीं है मुझमें समझ ऐसा लोग सोंचते हैं
माया का नहीं है मोह फिर भी लोग टोंकते हैं
घमंड नहीं खुद पर मुझे नाज़ है
तुझे हो न हो लेकिन मुझे खुद पर एतवार है...


हर दिन इक नई जंग...एक नई उड़ान है
अकेले हूं ये पता है मुझे
तभी तो तूफानों से प्यार है...