5/10/2013


      "मनप्रिय"  
   जो 'मन को हो प्रिय' उसे कह दो होकर अभय
   न कहना फिर खुद-से कि निकल गया समय

वक्त न कभी किसी का था, ना कोई हो सका वक्त का
       कहीं कोई जो हो गर 'मन को प्रिय'
    वक्त गुज़रने से पहले तुम बोल देना ह्रदय...!!!

    मन में रखने से अच्छा है खोल देना ह्रदय
       तुम न घुटना मन ही मन फिर
      न फिर करना कोई शिकवा ए-ह्रदय...!!!

   उड़ चलेगा बादल-हवा के झोंकों से हिलकर
   फिर गगन होगा नीला जो होता है अक्सर
   सावन के पतझड़ बनकर रहना से अच्छा है
           बसंत ऋतु बनना
   नई उमंगे-नये मौसम में खुद को तुम रंगों से भर लेना

       बस ऐसे ही हो जाना तुम अभय...
        उस 'मनप्रिय' के लिए भी  
  जो 'मन को हो प्रिय' उसे कह दो होकर अभय...!!!

5/04/2013

तेरा अहसास...!!!


            तेरा अहसास
      आज भी बाकी है मुझमें...

मेरे जीने की वजह ये ही काफी है मुझमें
तेरी चाहत के पल मेरी सांसों में बसते हैं
  तेरी यही यादें काफी हैं मुझमें...!!!

तेरी हर सीख से आज,सच में ज़िंदा हूं...
वरना दुनिया ने तो कब का मार डाला था

    हंसता था-खिल-खिलाता था
     चुलबुल था, शैतान था
रूदन करता था, तो तू कैसे भी मना लेती थी
 मेरी हर नादानी को तू पल में भुला देती थी
 
   वो मेरा बचपन था और तेरा बढ़प्पन
आज मैं बड़ा हो गया हूं...बचपन से भले ही परे हो गया हूं
         
             लेकिन "मां"
             तेरा अहसास
         आज भी बाकी है मुझमें...    
       मेरे जीने की वजह ये ही काफी है मुझमें
        तेरी चाहत के पल मेरी सांसों में बसते हैं
          तेरी यही यादें काफी हैं मुझमें...!!!

कौन है तुझमें छुपा...


      कौन है तुझमें छुपा...वो कौन है मुझमें छुपा...
      झांककर बस देख ले, तू खुद में 'खुद' को भला...
 सच की आंधयों को लेकर तू कूद पड़, सच की जंग में सदा
                न रुक, न सोंच,
      कि अगले पल क्या होगा- तेरा और क्या मेरा भला...
             खुद से उपर उठकर देख
             खुद से हटकर तू सोंच ज़रा
             खुद में खुद को कर महसूस
                 और मिला दे
               खुद को खुदा में ज़रा    
     फिर सोंच ज़रा, कि क्या था तेरा, और क्या था मेरा 
              ये जल-थल-नभ-अग्नि-पाताल
         हर शख्स में है जन्म से ही तो है भरा
                      फिर     
       क्यों मौन है तूने धरा, क्यों मौन है मैंने धरा
            बन जायें हम सब- अब बागी
            और हिलां दें इक बार सारी धरा
            सच की आंधी तले - बस रौंद दे
                 हर इक बला  

      कौन है तुझमें छुपा...वो कौन है मुझमें छुपा...
      झांककर बस देख ले, तू खुद में 'खुद' को भला...
 सच की आंधयों को लेकर तू कूद पड़, सच की जंग में सदा
                न रुक, न सोंच,
      कि अगले पल क्या होगा- तेरा और क्या मेरा भला...!!!