10/26/2017

अपने शहर की गलियाँ बहुत याद आती हैं
जब भी गुजरता हूं इन गलियों से
वो महबूबा बहुत याद आती है...

मैं निकलता था जब भी इन गलियों से
वो सूरज की रौशनी सी छत पर आ जाती थी 
जब से गया हूं इन गलियों को छोड़कर
ये गलियाँ अब मुहब्बत का अहसास कराती हैं
अपने शहर की गलियाँ बहुत याद आती हैं ...