तन्हाइयां...
तन्हाइयों
में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं
जैसे बिन धागे की कटी पतंग...
तन्हाइयों
में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं
जैसे बिन पानी के प्यासा सावन...
तन्हाइयों
में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं
जैसे बिन पानी के तड़पती मछली
तन्हाइयों
में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं
जैसे समंदर की गहराईयों में मोती सीप का
तन्हाइयों
में तेरे बिन खुद को इतना अकेला पाता हूं मैं
जैसे बिन श्वासों के धरा पर रखा मानव शरीर
कैसे बताऊं...कैसे समझांऊ...
कि मैं पतझड़ हूं तेरा और तू है मेरा बसंत
मैं बादल हूं तेरा और तू है सावन मेरा
रूह के अंदर बस तू-ही-तू है
फिर भी चंचल मन है कि ढूंढता है तुझे
कैसे समझाऊं मैं इस चंचल मन को
कि तू दूर नहीं दिल के पास ही है
मेरे
मन के कोने-कोने में बस तू-ही-तू है
कैसे बताऊं...कैसे समझांऊ...
कि मैं पतझड़ हूं तेरा और तू है मेरा बसंत
मैं बादल हूं तेरा और तू है सावन मेरा
रूह के अंदर बस तू-ही-तू है