10/26/2017

अपने शहर की गलियाँ बहुत याद आती हैं
जब भी गुजरता हूं इन गलियों से
वो महबूबा बहुत याद आती है...

मैं निकलता था जब भी इन गलियों से
वो सूरज की रौशनी सी छत पर आ जाती थी 
जब से गया हूं इन गलियों को छोड़कर
ये गलियाँ अब मुहब्बत का अहसास कराती हैं
अपने शहर की गलियाँ बहुत याद आती हैं ...

8/25/2017

कुछ ख्वाब बुने थे इक दिन मैंने ...

कुछ ख्वाब बुने थे इक दिन मैंने
कुछ अधर में छूट गये
कुछ सपनों में ही टूट गये
कुछ बाकी बचे थे किसी तरह
पाला पोसा उन्हें बड़ा किया
फिर आई इक और आंधी
जिसने जिंदगी को झकझोर दिया
कैसे संभलू कैसे दोबारा...
कुछ ऐसे ही झंझावत में था फंसा हुआ
आंखे मूंद तब उसको ध्यान किया
ईश्वर की "प्रीत" जुड़ी मुझसे तब
जिसने राहों को मोड़ दिया
निश्छल मन से दामन थाम लिया
कुछ राह दिखाई चलने की
टूटे ख्वाबों को फिर से जिंदा किया
ए-मालिक तू बस ऐसे ही अब
अपनी "प्रीत" बनाए रखना
ताकत बनना साहस देना
ख्वाब अधूरे करूं मैं पूरे
ए-प्रीत तू मुझमें बस जाना
... #रावीबरेवी I Rk I...