ये
कौन सी डगर है...ये कैसा भंवर है...
मंजिल पे पहुंचकर भी
क्यों
लगता है, कि अधूरा सफर
है...!!!
मौन
है अजीब सा...मंथन है मन में उमड़ पड़ा...
तमाशबीन है क्यों ज़िंदगी...
क्यों
राहों पर पहुंचकर भी...भटकता है ये मन भला
ये कैसा है मुकद्दर..यै कैसा है ज़िंदगी का
भला...!!!
वक्त के हाथों
हर पल क्यों गया हूं मैं छला...!
ये कौन सी डगर है...ये कैसा भंवर है...
मंजिल पे पहुंचकर भी
क्यों लगता है, कि अधूरा सफर है...!!!
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