बेबाक " आज के इस ज़माने में हर कोई इस शब्द के साथ ख़ेलने की हिम्मत नहीं जुटा सकता। बेबाकी के साथ अगर आपने अपने ऑफिस य़ा फिर घर में ज़रा सी भी आवाज़ निकाली तो आपकी खैर नहीं ... बेबाकी के साथ बोलने की हिम्मत बची ही कहां है अब ... बची है क्या ? ? ? नहीं न ! तो फिर बोलने में " सकुचाना काहे का । मेरे ब्लॉग ने विशेषतौर पर आपके अंतर्मन की बेबाकी को ही बाहर निकालने के लिये जन्म लिया है। दिल खोल कर कहिये अपनी बात ... पूरी बेबाकी के साथ ...
10/15/2012
ज़ख्म, दवा, मरहम, वजह... कौन कहता है कि ये नहीं होती दुआ... क्योंकि न होता ज़ख्म, और न बनती दवा...
न लगता लगता मरहम और न होती किसी के दुआ करने की वजह...
ज़ख्म, दवा, मरहम, वजह... कौन कहता है कि ये नहीं होती दुआ...
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